Friday, February 26, 2010

Holi - A poem by Mr GSPrasad IAS (Retd)

होली


आतंकवाद के बावजूद
बच्चे का भोलापन
'विमेंस लिब' के पीछे
किशोरी की लज्जा
बढती आबादी में भी
लोगों का अपनापन
'फ्री सेक्स' के रहते
कोहबर की सज्जा
गरीबी के पहाड़ की तलहटी में
संतोष की छांव
रुग्णता में भी
जोरों से धरकता दिल
उदंडता के बीच प्राणमय
माता-पिता-गुरूजी के पाँव
त्योहारों की जड़ता-नीरसता में
आओ खेले होली हिलमिल
क्योंकि
भोलापन रहेगा, अपनापन रहेगा
लज्जा रहेगी, सज्जा रहेगी
धड़कते दिल रहेंगे
पूजनीय पाँव रहेंगे
और
होली का प्रिय पर्व रहेगा
तो आओ खेले होली हिल-मिल


गोपाल शंकर प्रसाद
२६ फेब्रुअरी 2010